रस्सी से बांध गला , ये मन कैसे माना होगा
वो पल भी कितना बेरहमी था , जिस पल तूने ये ठाना होगा
ज़िंदादिली शख्स ना जाने कैसे , बुजदिली से भर गया
खुशी बांटने वाला न जाने क्यूं , आखिर खुदकुशी कर गया
अपनी फिल्मों से चौंकाने वाला , आज भी चौका के ही गया
धोखा ना देने वाला सरफराज भी , हमको धोखा दे ही गया
भले ही थे हालातो के हारे , या वक़्त के मारे
पर क्या जाना सही था , आत्महत्या के सहारे
अपना अंत करना , समस्या का अंत नहीं
– अभय कोठारी